पर्यावरण एवं मानव के मध्य संबंध
1. आखेटक काल/शिकारी काल/आदिमानव काल | कारक | पाता - दाता |
2. पशुपालन काल | रूपांतर करता या सहायक | सामाजिक मानव |
3. कृषि काल | परिवर्तन काल | आर्थिक मानव |
प्रौद्योगिकी मानव | विध्वंसक या विनाशकर्ता | प्रौद्योगिकी मानव |
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- आखेटक काल : इसे शिकारी काल और आदिमानव काल के नाम से भी जाना जाता है इस काल में मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं की भांति पर्यावरण का एकमात्र कारण था इसलिए इसका पर्यावरण के साथ कारक संबंध बना इस काल का मनुष्य अपनी सभी जरूरतों को पर्यावरण से प्राप्त करता था।
- पशुपालन काल : यह पर्यावरण का दूसरा काम है इस काल में मनुष्य सर्वप्रथम समूह में रहना प्रारंभ किया था इस काल के मानव को उसके पर्यावरण के साथ रूपांतर करता या सहायक का संबंध बना समूह में रहने के कारण इन्हें सामाजिक मानव कहा गया।
- कृषि काल : यह पर्यावरण का तीसरा कारण है, इस काल के साथ में मनुष्य सर्वप्रथम पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करना प्रारंभ किया। तथा इस काल के मानव का उसके पर्यावरण के साथ परिवर्तन करता का संबंध बना। इस काल में मनुष्य आजीविका के साधन को जुटाने का मुख्य कार्य कर रहा था इसीलिए इसे आर्थिक मानव की संख्या प्रदान की गई।
- प्रौद्योगिकी काल : यह पर्यावरण का वर्तमान काल है इस काल में मनुष्य अपने जीवन को आसान बनाने के लिए मशीनरी यानी मशीनीकरण के दिशा में तीव्र गति से आगे की ओर बढ़ा तथा इस काल के मानव का उसके पर्यावरण के साथ विध्वंसक या विनाशक का संबंध बना है।
पर्यावरण की अवधारणाएं
🔹इसकी तीन अवधारणाएं हैं
- नियतवादी अवधारणा - प्रकृत
- संभववादी अवधारणा - मानव विज्ञान
- नव नियत वादी अवधारणा - संतुलन स्थापित करना मानव एवं प्रकृति के मध्यस्थ
- नियत वादी अवधारणा - प्रकृति सर्वशक्तिमान है और मनुष्य उसके हाथ का खिलौना इस नियत वादी की अवधारणा है।
- प्रकृति श्रेष्ठ है मनुष्य गौण है।
- पूर्णता प्रकृति केंद्रित मानी जाती है।
- इसे पर्यावरण उपागम भी कहा जाता है।
- मनुष्य का जन्म पृथ्वी से हुआ है।
- संभववादी अवधारणा - पूर्णता मानव केंद्रित मानी जाती है।
- मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है प्रकृति गौण है।
- मनुष्य परिवर्तनशील है।
- प्रकृति का सक्रिय अंग है।
- प्रकृति के प्रत्येक पहलू में परिवर्तन कर सकता है।
- यह अवधारणा प्रयोगवाद और विज्ञान वाद पर बल प्रदान करती है।
- मनुष्य पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर चुका है।
- नवनियतवादी अवधारणा - यह अवधारणा उपयुक्त दोनों अवधारणाओं की श्रेष्ठा को अस्वीकार कर दिया है।
- प्रकृति और मनुष्य के मध्य संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है।
- मनुष्य को प्रकृति में परिवर्तन करना चाहिए परंतु प्रकृत नकारात्मक रूप से प्रभावी होने लगे तो मनुष्य को प्रकृति के अनुसार हो जाना चाहिए।
- यह अवधारणा सतत विकास या धारणीय विकास पर बल प्रदान करती है।
- पारिस्थितिकी अवधारणा - प्रकृति को श्रेष्ठ माना गया है परंतु मनुष्य को प्रकृति का ही एक अंग माना गया है।
- मनुष्य को परिवर्तन का अवसर प्रकृति प्रदान करती है।
- समाज की स्थिरता पर बल प्रदान करता है।
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पारिस्थितिकी [ECOLOGY]
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